राम को भव्य मंदिर का न्योता आया
कोई शहेंशाह था बुलाने जो था आया
‘हे पुरुषोत्तम राम, पधारो अपने जन्मस्थान
शत्रु हुआ निकासित, धरती अब अपनी तमाम
बाबर के संतानों को, इन घुसपैठिए मुसलमानों को
अब करेंगे निस्तानंबूत, हम हैं अब हुक्मरान’
राम के शक्ल पर क्रोध और अविश्वास,
‘क्यों छोडूं में स्वर्ग का वास?
मेरे अयोध्या पे खून के छीटें हैं
तुमने सत्ता की फसल खून से जो सीचें हैं।’
‘अब मुझे क्यों बुलाते हो?
अपने मानव दहन पर मेरा चित्र चढ़ाते हो!’
‘रामराज में कोतवाल सबको गले लगता था,
शाह राज में कोतवाल बूटों तले दबाता है’
‘फिर शहंशाह तुम भी अब जो,
6 दिसंबर के मंज़र मत दोहराओ
उस दिन तो तुमने मुझे बेघर किया था
आज तुम मुझे बेवतन बना जाओ।’